ईश्वर दुबे
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Bhilai
मोटिवेट करने के लिए एक कहावत है कि जिसे पढ़ना होता है वह सड़क की लाइट के नीचे बैठकर भी बढ़ लेता है। पर क्या आपको लगता है कि सरकार द्वारा पढ़ाई-लिखाई पर करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी स्कूल-कॉलेजों की झज्जर स्थिति में पढ़ता बच्चों के साथ न्याय है। जनता कर देश की व्यवस्था को दुरूस्थ करने के लिए भरती है, ताकि सरकार लोगों को बेहतर सुविधा दे सकें लेकिन दुख की बात यह है कि शहरों में तो दिखाने के लिए काफी हद तक चीजें ठीक करलदी जाती हैं लेकिन गांव-देहात में स्थिति बहुत ही दयनीय है। इस समय मानसून है ऐसे में बारिश कई इलाकों में तेज हो रही हैं। कुछ स्कूलों को बंद कर दिया गया है लेकिन कुछ जगह स्कूल खुले है। ऐसे में बारिश में क्लास के अंदर छतरी लेकर बैठे बच्चों का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।
मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के एक सरकारी स्कूल का एक वीडियो हाल ही में ऑनलाइन सामने आया है जिसमें आदिवासी छात्रों को कक्षाओं के अंदर बारिश के पानी से खुद को बचाने के लिए छतरियों को साथ लेकर बैठे देखा जा सकता है। क्लासरूम की छट से पानी बह रहा है और बच्चे छाता खोल कर बैठे बढाई कर रहे है। एक बार सोचिये ऐसी स्थिति में बच्चे कैसे बढ़ा ई कर पा रहे होंगे। इस दौरान स्कूल में प्रेक्टिक और असाइमेंट दिए जाते हैं।
ट्राइबल आर्मी नाम के एक लोकप्रिय आदिवासी अधिकार की वकालत करने वाले ट्विटर अकाउंट पर लिखा, "यह वीडियो मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के आदिवासी बहुल खैरीकला गांव के एक प्राथमिक विद्यालय का है। बारिश का पानी टपकने से बचने के लिए छात्र स्कूल के अंदर छतरियों के साथ पढ़ने को मजबूर हैं। शिवराज चौहान अपने बच्चे को पढ़ने के लिए विदेश भेजते हैं। गरीब आदिवासी बच्चों की यह स्थिति।"
वीडियो ने समाज के निम्नतम वर्गों की बुनियादी जरूरतों के उत्थान और सुधार में सरकारी नीतियों की प्रभावशीलता पर कई सवाल उठाए। राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (एनएएस) में प्राथमिक कक्षाओं की राष्ट्रीय शैक्षिक उपलब्धियों में मध्य प्रदेश को पांचवां स्थान मिला है, लेकिन इस वीडियो में रिपोर्ट और सर्वेक्षणों के विपरीत एक विरोधाभासी वास्तविकता दिखाई गई है।
बारिश के दौरान स्थिति और खराब
रिपोर्टों के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में स्कूल की स्थिति इतनी खराब हो गई है कि अधिकांश माता-पिता मानसून के मौसम में अपने बच्चों को बिल्कुल भी नहीं भेजना पसंद करते हैं। छत टपकने के कारण कई छात्र स्कूल नहीं जाना चाहते हैं। कई अधिकारियों ने खुलासा किया कि उन्होंने मई में बीआरसी कार्यालय को प्रस्ताव दिया था, लेकिन किसी ने भी इस पर ध्यान नहीं दिया। हालांकि, बीआरसी अधिकारी ने खुलासा किया कि उन्होंने मरम्मत के लिए एक प्रस्ताव भेजा है, और जब फंड आएगा तो यह किया जाएगा। जैसा कि केंद्र सरकार नई नीतियों और योजनाओं को शुरू करके शिक्षा क्षेत्र में सुधार पर जोर दे रही है, इस तरह के उदाहरण उसी के कार्यान्वयन की जमीनी हकीकत पर गं